बुधवार, 16 अप्रैल 2014

कावड़िये

सावन का महीना लगते ही
सड़कों पर दौड़े कावड़िये
 रंग -बिरंगे  कपड़े  पहने          
जय शम्भु बोले कावड़िये

फूलों और मालाओं से
कावड़ सजवाये कावड़िये
कलशो में भर गंगा जल
पूजा  करवाते  कावड़िये                      
 बम बम बोले कावड़िये

कन्धों पर रख कावड़ को
मस्ती में चलते कावड़िये
मीलो पैदल चल -चल कर
शिव पूजन करते कावड़िये
 बम बम बोले कावड़िये

मार्ग  के कंकर-पत्थरों से
नहीं घबराते कावड़िये
खून बहे पांवों से चाहे
नहीं रुकते ये कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये

लगा भोग शंकर के
भांग घोटते कावड़िये
खाते-पीते मस्ती करते
चलते जाते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये

सुन्दर-सुन्दर शिविरों में
थकान मिटाते कावड़िये
 हलवा-पुड़ी,खीर-जलेबी
 भोग लगाते कावड़िये
 बम बम बोले कावड़िये

अबकी सावन गंगा को
स्वछ करेंगे कावड़िये
अगले सावन फ़िर बोलेंगे
हर हर गंगे कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये।







































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