बुधवार, 16 अप्रैल 2014

शहीद की पीड़ा


मै इस देश की
सीमा पर तैनात एक 
अदना सा सिपाही हूँ

देश की
रक्षा करते हुए
आज शहीद हो गया हूँ   

मैंने अभी तक
जीवन के पुरे नहीं
किये हैं तीस बसंत 

पच्चीस बर्ष
की उम्र मे ही जीवन 
का हो गया अंत

मै जानता हूँ
मेरे  लिए कोई
शोक सभा नहीं होगी

कोई मौन
नहीं रखा जाएगा
कोई झंडा नहीं झुकेगा 

यहाँ तक कि
मेरे गाँव में मेरा कोई
स्मारक भी नहीं बनेगा

एक सिपाही की
मौत से किसी को क्या
फर्क पडेगा ?

हाँ ! फर्क पडेगा
मेरे बच्चों को जिनका
मै बाप था

मेरी पत्नी को
जिसका मै पति था 
मां को जिसका मै बेटा था

और .....कल के
अखबार के कोने मे 
एक छोटी सी खबर छपेगी

कश्मीर घाटी में
आतंकियों से मुकाबला करते    
तीन सिपाही शहीद। 




































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