बुधवार, 16 अप्रैल 2014

माँ और बाबूजी

बाबूजी
जब खाना खाने बैठते तब माँ
आसन बिछा कर पाटा लगा देती

बगल में
एक लोटा और गिलास
पानी का भर कर रख देती

बाबूजी
लोटे से हाथ धोकर
शांत भाव से आसन पर बैठ जाते

माँ
थाली में खाना परोस कर
बगल में पंखा झलने बैठ जाती

बाबूजी
मनुहार के साथ खाना खाते हुए
माँ को घर-बाहर की बाते बताते

बाबूजी
खाना खाने के बाद जब  हाथ पौंछते 
माँ गमछा  पकड़ा  देती

माँ
जब जूठी थाली उठाती तो उसके चेहरे
पर एक संतोष का भाव होता

माँ
ही समझ पाती उस संतोष के आनंद को
दुसरा नहीं समझ पाता

आज
भाग दौड़ भरी जिंदगी में क्या कोई  इस
आनंद की कल्पना भी कर सकता है ?






























फूल जो पेड़ का सौंदर्य है, उसकी सोभा है, लेकिन विक्टोरीया में घूमते लोग कटेली चम्पा के पेड़ पर लगे फूल को ढूँढ कर तोड़ लेते है। थोड़ी देर फूल दो चार हाथो में घूमता है और फिर नोच कर डाल  दिया जाता है, पांच मिनट में फूल का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। 





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