जेठ -असाढ़ के महीना में
घड़ी -दो घड़ी दिन कोनी चढ़ै
जताने तो तपबानै
लाग जावै सूरज
दस बज्यां ही घर स्यूं बारै
निकळबो होज्या मुसकिल
आभा सूं बरसावण लागै
खीरा सूरज
दोफारी मे चालै लूवां
गली में बैठ्या कुता हुळक ज्यावै
अर सड़कां पर पड्यो डामर
पिघल ज्यावै
बलतो बायरो चैपे
ताता चींपिया डील माथै
गाभा करण लाग ज्यावै चप-चप
पसेवो बैवे जाणै न्हार निकल्यो हुवै
दिन आंथै कौनी
बिउं पैली आ ज्यावै
बाळणजोगी आँधी अर
करदै टापरा को सत्यानाश
रात बापड़ी ठंडी हुवै
जणा जा' र थोड़ी शांती मिलै
पण दिन उगता ही सूरज फैरू
तपबाने लागज्यावै लगादै गळपांश।
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