शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

सुन्दर रूप तिहारो

बालपने मुख माटी खाई
मुख में तीनो लोक दिखाया
                 सूखे तंदुल चाव से  खाकर
                  बाल सखा का मान बढ़ाया

मीरा का विष अमृत कीनो
द्रोपद  सूत को चिर बढायो
                  ग्वाल-बल संग धेनु चराई
               गोपियन के संग रास रचायो

इंद्र कोप करयो ब्रज ऊपर
अँगुली पर गोवर्धन धारयो
                    पापी कंस को मार गिरायो
                     कपटी कौरव वंस मिटायो

गीता ज्ञान दियो अर्जुन को
   समर भूमि में बने खेवैया
                      कुँज गली में माखन खायो
                          कालिदेह के नाग नथैया

नाना रूप धरे प्रभु जग में
धरुँ ध्यान इस सूरत से
                            इतनो सुन्दर रूप तिहारो
                            अंखियां हटे नहीं मूरत से।  

गीत गाया तुमने

मेरी अंधियारी राहों में
ज्योति दीप जलाया तुमने
                      बूँद-बूँद में अमृत भर
                जीवन आश जगाई तुमने

जीवन के सुख-दुःख में
मेरा साथ निभाया तुमने
                    मेरे लिखे प्रेम गीतों को
                 अपने स्वर में गाया तुमने

   मेरी प्रति छाया बन कर
मुझको अंग लगाया तुमने
                      मेरे जीवन के हर रंग में
                      इंद्रधनुष सजाया तुमने

    मेरे चंचल नयनों में
राधा बन कर आई तुम
                     मेरी जीवन की बगियाँ में
                     सावन बन कर बरसी तुम

नाम भगीरथ रख कर भी
मै  ला न सका  गंगाधारा
                         तुम बनी स्वाती की बूँद
                        लेकर सागर से जल खारा। 

अब घर आज्या रे



उमड़-घुमड़ कर
बादल बरसे
बिजली चमके
मन मेरा डोले रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

धुप गुनगुनी
भोर लावनी
धरा फागुनी
होली आई रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

अमियाँ बौराई
सरसों फूली
महुआ महका 
झूमी वल्लरियाँ रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

पायल-बिछिया
पाँव महावर
कमर करधनी 
जिया जलाए रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

मन बौराया
तन गदराया
चैत चाँदनी
फगुआई रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?




जब हम गंगा में
माटी के दीपक
प्रवाहित करते और
देखते रहते कि किसका
दीपक आगे निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम सागर से 
सीपिया चुन-चुन कर 
इकट्ठी करते और
देखते रहते कि किसकी
सीपी से मोती निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम झील के
किनारे बैठे रहते और 
बादलो की रिमझिम फुहारों में
भीगते हुए तुम कहती 
ये पहाड़ कितने अपने लगते हैं
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
  

जब हम चाँदनी रात में
छत पर जाकर सोते और
टूटते हुए तारों को देख कर
तुम कहती तारों का टूटना मुझे
अच्छा नहीं लगता
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

रूठे को मनाएं

जो भी हम से रूठ गये
या जो हमको छोड़ गये
           
                      आओ उनको आज मनाऐं
                         बड़े प्यार से गले लगाऐं

    एक बार बाहों में भर कर
पुलकित हो कर कंठ लगाऐं
           
                  अपने मन का द्वेष हटा कर
                      फिर से उनको पास बैठाऐं

 भूल हुयी जो उसे भुलाऐं
वर्त्तमान को सुखद बनाऐं
               
                          जीवन का है नहीं भरोसा
                         आने वाला पल क्या लाये

   बैर भाव को मन से त्यागे
दया-क्षमा को फिर अपनाये
                 
                         अपनत्व का भाव जगा कर


                        फिर से प्यार का दीप जलाऐें। 

अपना बनाना

मै तुम्हारे
नाम का उच्चारण
दुनिया की प्रत्येक भाषा
में करना चाहता हूँ

मै तुम्हारे
एक-एक रोम में
अपने प्यार को मुदित
करना चाहता हूँ

मै तुम्हारे
करुणा, प्रेम और त्याग का
पर्याय दुनिया की प्रत्येक भाषा में
ढूढंना चाहता हूँ

मै  तुम्हे उन
हज़ारो नामों से पुकारना चाहता हूँ
जन्म जन्मान्तर के लिए अपना
बनाना चाहता हूँ

मै फूल की
हर पंखुड़ी पर तुम्हारा नाम
अपने हाथों से लिखना
चाहता हूँ

मै फूल की
खुशबू के साथ-साथ
तुम्हारा नाम पुरी दुनिया में
फैलाना चाहता हूँ।

आओ गाँव लोट चले

अब नहीं सहा जाता
कंकरीट के जंगल में 
भीड़ भरा यह सूनापन
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन

घर के पिछवाड़े बेलों
महकने लगी होगी गंध 
बाजरी के सिट्टो पर अब 
लग गया होगा मकरंद 
मक्की के भुट्टो पर 
छाया होगा अब यौवन 
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन 

खेत की मेड़ों पर अब भी
खड़ी होगी मीठी बाते  
खेजड़ी की छांव तले
मंडराते होंगे अलगोजे
चिड़िया चहक रही होगी आँगन 
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन 

सरसों बल खाती होगी
पछुवा धूल उड़ाती होगी 
अंगड़ाता होगा खलिहानों में
फिर से नया सृजन
बैसाखी पर नाचा होगा
खेतोँ  में फिर से योंवन
आओ, गाँव लोट चले मुदित मन 

अब नहीं सहा जाता
कंकरीट के जंगल में 
भीड़ भरा यह सूनापन
आओ गाँव लोट चले मुदित मन।

गंगा

भगीरथ के  तप प्रताप से
तारण हार बन आई गंगा  
           
                   शिव की जटाओ  में  उतर 
                    कैलाश से निचे आई गंगा

हिम शिखरों को लगा अंग  
बल खाती हुयी आई  गंगा 
           
                    नदी नालो को लेकर  संग
                    देश की नियंता बनी  गंगा

अपने पथ को हरित बना
गावों को समृद्ध करे गंगा
           
                     पान करा अमृत  सा जल
                     सागर से जाय मिले गंगा 

घाटो  पर सुन्दर  तीर्थ बने
संतो की शरण स्थली गंगा
         
                  जीवन दायिनी मोक्ष दायिनी
                       भव सागर पार करे  गंगा

अन्तिम साँस थमे तट पर
   बैकुंठ की सीढ़ी बने गंगा
               
                    दुखियों के दुःख को दूर करे
                        जीवन  के पाप हरे गंगा।

बुधवार, 2 जुलाई 2014

तुम्हे मुस्कराते देखा होगा

तुम्हारा साथ है तभी तक यह जान है
तुम्हारे बिना मौसमे-बहार का भी क्या होगा

तुम्हारे जाने से लगा तनहा जीना आसन नहीं
तुम लौट कर आवोगी तभी मौसमे-बहार होगा

मेरे कानो के पास से जब भी गुजरती है हवाए
कहती है मत धबराओ तुम्हारा प्यार खरा होगा

तुम्हारे जाने से वीरान है ये आँखे
तुम लौट कर आओगी तभी मधुमास होगा

बीत गए कितने ही दिन तुमको गए हुए
उठती है एक हूक दिल में कुछ खलता होगा

मुझे पता है बादल भी यू ही नहीं बरसता
जरुर किसी की याद में आँसू बहा रहा होगा

महीनो बाद आज तुम लौट कर आयी हो
तुम्हे देख घर का कोना-कोना महका होगा

हँस पड़े बगिया के फुल जैसे ही तुम घर में आई
चराग भी खुद जल उठै,तुम्हे मुस्कराते देखा होगा।

रविवार, 29 जून 2014

अहसान तुम्हारा




तुम से शोभित घर आँगन
तुम  से है जीने  की  चाह
                               
                                    बिना तुम्हारे फिर  कैसी
                                      दुनिया में जीने  की चाह

हँसते  हुए तुम्हे जब  देखें 
   हम  सब खुश हो जाते हैं 
                                   
                                     देख उदास तुम्हारा चेहरा
                                         हम  बैचेन  हो  जाते हैं 

प्रेरणा और शक्ति हो तुम
  हम सब की खुशहाली हो
                                         
                                           गीता की तुम वाणी हो 
                                            तुलसी की  चौपाई हो

वात्सल्य की मधुर छाँव में
    तुमने  बांटा सबको प्यार 
                                         
                                            तुम्हारे आँचल में सिमटा
                                              इस घर  का सारा संसार

 दीप लिए  दोनों हाथों में
     सब को राह दिखती हो 
                                             
                                                     आशीषो  के शीतल झोंके   
                                                       तुम  हरदम लुटाती  हो। 

जीवन की यादें

जीवन भी
धूप-छांव कि तरह
कितने रंग बदलता है

कभी सुख
तो कभी दुःख
कभी ग़म तो कभी ख़ुशी

कभी दोस्त
तो कभी अजनबी
कभी सुदिन तो कभी दुर्दिन

नदी की तरह बहता है जीवन
पुराने बिछुड़ते रहते है
नए मिलते रहते हैं

जो आज हमारा है
कल किसी और का हो जाता है
सब कुछ बदलता चला जाता है

रह जाती है केवल चंद यादें
वो यादें जो जीवन के अंत तक
साथ निभाती है।

पतझड़


पिट्टसबर्ग का
पतझड़ भी बड़ा
सुहावना होता है

पतझड़ लगते ही
पेड़-पौधों  के पत्तों रंग बदलने लगता है

लाल,गुलाबी,पीले
 बेंगनी आदि रंगों में
   पेड़ बहुत सुन्दर लगते हैं 

जमीन पर गिरते
 रंगीन पत्ते धरती को 
एक नया परिधान देते हैं 

दूर-दूर से लोग
प्रकृति के इस सुन्दर
   नज़ारे को देखने आते हैं  

पतझड़ के मौसम
में भी ढेर सारी खुशियाँ
   बटोर कर साथ ले जाते है  

काश। हम भी
इन पेड़-पौधों से
कुछ सीख ले पाते

अपनी जिन्दगी से
थोड़े से प्यार के रंग दूसरो की
जिन्दगी में दे पाते। 




पिट्सबर्ग




पहाड़ों में बसा सुन्दर शहर
तीन नदियों का संगम स्थल
हरे भरे खेत,गोल्फ के मैदान
एवर ग्रीन सिटी - पिट्सबर्ग 


जंगलो में ट्रेकिंग, बाइकिंग ,कैम्पिंग
नदियों में बोटिंग, राफ्टिंग, रोविंग   
केसीनो,बैले थियेटर,कॉफ़ी हाउस
सिटी ऑफ़ इंटरटेनमेंट - पिट्सबर्ग 


सड़कों पर दौड़ती रंगीन गाड़ियाँ
पुटपाथों पर दौड़ते लड़के-लड़कियाँ 
सर्राटे से भागती हुई साईकलें 
रनिंग सिटी - पिट्सबर्ग 


घरों के सामने सुन्दर बगीचे
रंग -बिरंगे खुशबू वाले फूल
चेरी, ऐपरिकोट,स्ट्राबेरी के पेड़
सिटी ऑफ़ फ्लोवर्स- पिट्सबर्ग 


हस्ट-पुष्ट और स्वस्थ नागरिक
चहरों  पर हँसी और मुस्कराहट
परिश्रमी, दयालु  और परोपकारी   
ऐनरजेटिक  सिटी - पिट्सबर्ग    


फुटबाल, होकी, टेनिस के खिलाड़ी  
बेसबाल और गोल्फ के शोकीन
पाईरेट्स-स्टीलर्स-पेंगुइन के मुकाबले
सिटी ऑफ़ चेम्पियनस - पिट्सबर्ग 


मेडीसिन और ट्रांसप्लांट सर्जरी में
विश्व में विख्यात यु. पी. ऍम. सी.
टेकनोलोजी में अग्रणी सी. ऍम. यु.
आठ  युनिवर्सिटीज का शहर - पिट्सबर्ग 


पहाड़ों पर अनेक किस्म के पेड़  
फूलों से  लदी रंग बिरंगी झाड़ियाँ
फाल में नंदन कानन का सौन्दर्य
अमेरिका का मिनी स्वर्ग - पिट्सबर्ग 


आकाश में चांदनी बिखेरता चाँद 
तारों से झिलमिलाती सुनहरी रातें 
चारो ओर चमचमाते हुए जुगनू
प्राइड ऑफ अमेरिका - पिट्सबर्ग ।

आनंद और उत्साह





मैं नहीं जानती कि
तुम्हे सुबह के पेपर में
कौन सी खबर चाहिए, 
लेकिन मै जानती हूँ कि
तुम्हे सुबह की चाय में
अदरक जरुर चाहिए

मैं नहीं जानती कि
देश में बढ़ते घोटाले
कैसे रोके जाने चाहिए,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
स्कूल से आने के बाद
बच्चो को क्या चाहिए

मैं नहीं जानती कि
आरक्षण निति से गरीबो को
कितना लाभ मिलता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
तुम्हारी माँ को मेरे हाथ का
खाना  खाकर आनंद मिलता है

मैं नहीं जानती कि
बढ़ते राजकोषिये घाटे को
कैसे कम किया जा सकता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
घर के बजट को कैसे संतुलित
किया जा सकता है

मैं नही जानती कि अलकायदा 
और तालिबान की धमकी से
अमेरिका की नींद उड़ जाती है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि तुम्हारे
बालो में अंगुलियाँ फेरने से
तुम्हे नींद आ जाती है।



शनिवार, 28 जून 2014

पिट्सबर्ग का मौसम

कब सोचा था कि  
अमेरिका के पिट्टसबर्ग में
जाकर रहना पडेगा

भाषा और चाल- चलन
को समझना पडेगा
सर्दी-गर्मी को भी सहना पडेगा

गर्मियों में होता है यहाँ
पंद्रह घंटों का दिन 
और नौ घंटों की  रात

सड़क पर पैदल चलना पड़े तो
गर्मी करदे बेहाल और देखते ही
देखते बादल और बरसात

फाल के मौसम में पेड़-पौधे 
छोड़ देते पुराना आवरण
और धारण करते नया परिधान

नयी कोपलें जब पेड़ो पर
नए रंग में निकलती है
नंदन बन से लगते है बागान

सर्दियों में जब बर्फ गिरती है
चारो ओर उड़ते है बर्फ के फोहे
पूरा वातावरण ठिठुर जाता है

सड़क, मकान और पेड पौधे
सब हिम के धवल कणो से
ढक जाते है

सबसे सुन्दर होता है स्प्रिंग
जब चारों और रंग-बिरंगे
फूल खिलते हैं

पेड़ फलो से लहलहा उठते है
घाटियां और मैदान फूलो से
ढक जाते हैं

धरती पर ऐसा नजारा
बनता है की मन
आनंद से भर जाता है।

खानाबदोश औरत

खानाबदोश औरत 
अपनी मांसल देह के साथ 
बिना थके नापती रहती है
पुरे प्रदेश को

लम्बे-चौड़े डग भरती 
चलती चली जाती है 
परिवार के साथ 
एक गांव से दुसरे गाँव को

बिना सर्दी-गर्मी की 
परवाह किये कहीं भी   
डाल लेती है डेरा 
सिर छुपाने को

चक्कर लगाती रहती है 
ट्रको और बसों का 
झोली में रखे सामान 
बेचने को

ड्राइवर होठों  पर 
कुटिल मुस्कान लिए 
घूरते है उसके माँसल
बदन को

समेटती खुद को
उन भेदती निगाहों से जो 
छील देती है जिस्म के
अंतस को 

सांझ ढले वह
माँ, बहन, पत्नी होती है
लेकिन वो डेरा होता है
घर नही होता उसका

अपने घर का सपना
उसकी आँखों में ही रह जाता है
और अक्सर यह सपना 
आँसूओं में ढल कर बह जाता है।  

अंग दान करे


जब कोई वस्तु हमारे काम की
नहीं रहती तब भी उसकी
उपयोगिता बनी रहती है

भले ही वो हमारे काम की
नहीं रहे, किन्तु किसी दुसरे 
के तो काम आ ही सकती है

शरीर जो आज हमारा है
कल हमें छोड़ कर जाना होगा
पता नहीं कब साँझ ढल जाये 

फिर क्यो नहीं ऐसा करे कि जो  
हमारे काम का नहीं है वो किसी
दुसरे के काम आ जाये

हम अपनी आँखे दे कर
किसी के जीवन में रोशनी की 
किरण ला सकते है

हम अपना ह्रदय देकर
किसी की धड्कनो को ज़िंदा
रख सकते हैं 

हम अपने फेफड़ें दे कर
किसी की साँसों को जीवित
रख सकते हैं 

हम अपने गुर्दे दे कर
किसी के जीवन को बचा
सकते हैं 

शरीर के अंगो का दान कर
कई लोगो को नया जीवन
दिया जा सकता है

तो फिर क्यों नहीं 
इस शुभ कार्य की शुरुआत
हम आज ही करे

मृत शरीर का दान कर
अनेकों की जिंदगी फिर से
रोशन करे।


You don't have to be a doctor to save lives. 

Donate Organs, Donate Lives! 

मेरा स्वाभिमान


मेरी शादी की चुन्दड़ी में 
लगे सलमे-सितारे अब मेरी
आत्मा में चुभने लगे हैं 

लग्न और मुहूर्त में
बन्धे ये सारे बन्धन 
मुझे अब झूठे लगने लगे हैं 

मैं नहीं भूला सकती 
अपनी पीड़ा और अपमान 
जो उसने मुझे दिये हैं 

व्यथित शब्दों
के तीर अब मेरे ध्यैर्य की 
आख़िरी सीमा भी लांघ गये हैं 

मेरा स्वाभिमान भी
अब उसके अंहकार के लिए
खतरा बन गया है 

मैंने जितना
समर्पण का भाव रखा 
उतना ही वो निष्ठुर बन गया है 

मैं जीवन संगिनी
या सहभागिनी की जगह
बंदिनी बना दी गयी

कंकरीट में दबी
पगडण्डी की तरह मेरी
हर एक इच्छा दबा दी गयी

मैं अब इस बंधन से
मुक्त होकर अपना नया
जीवन जीना चाहती हूँ

पुरानी यादों को
अब मै हमेशा के लिए
दफना देना चाहती हूँ

अपनी शादी की
चुन्दडी को अब मैं 
उतार देना चाहती हूँ

उसमे लगे 
सलमे-सितारे अब मैं 
उधेड़ देना चाहती हूँ।

किसी दिन

सावन का महीना होगा
                गाँव का घर होगा
                       मिट्टी के आँगन में
                     तुम्हारी पाजेब की रुनझुन
                                       सुनेंगे किसी दिन 


लहलहाती फसलें होंगी
         हवाओं में खुशबू होगी
                  वर्षात में भीगते हुए
                          खेत में साथ-साथ
                                     चलेंगे किसी दिन 


तारों भरी रात होगी
         चाँद की गोद होगी
                  शबनमी रात में
                           तुम्हारी प्रणय राग
                                    सुनेंगे किसी दिन


कश्मीर की वादियाँ होगी
        केशर की क्यारियाँ होगी
                 कमल खिली झील में
                          साथ बैठ कर सैर
                                   करेंगे किसी दिन


गोधुली बेला होगी
        आरती का समय होगा
                  पास के मंदिर में जाकर
                        भगवान के सामने दीया
                                जलायेगें किसी दिन


खुशबू भरी शाम होगी
         तुम मेरे पास होगी
                जुगनू की कलम से
                       तुम्हारे लिए एक कविता
                                   लिखेंगें किसी दिन।

तुम्हारे साथ

तुम्हारे साथ
मेरा दिन निकलता है
गुलाब के फूलों की तरह

तुम्हारे साथ
मेरी शाम ढलती है
जुगनुओं की तरह

तुम्हारा साथ
जीवन की राह में 
चाँद-चांदनी की तरह

तुम्हारा संग
सुख पल्लवित करता 
फूलों की छांव की तरह

तुम्हारे अधरों की 
मुस्कान सुख देती 
सबनम की बूंदो की तरह

म्हारी झील सी

आँखों में मेरा अक्श 
दिखता आईने की तरह

हमारे संग सफ़र की 
यादें  दिल में बसी है 
किताबों की तरह।

प्रकृति का ताण्डव




केदारनाथ मंदिर
उतराखण्ड का प्राचीन धाम
करोड़ो हिन्दुओ की श्रद्धा का केंद्र
जहाँ सुनाई दे रही है
सदियों से आस्था की गूंज

वही मंदिर आज 
खण्डहर बना खडा है
न पुजा,न पाठ, न आरती, न भोग
भांय भांय करता 
सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा

शिव मूक है
गंगा कर रही है तांडव 
इंद्र देवता का रौद्र रूप देख
मन्दाकिनी ने भी 
धारण कर लिया है विकराल रूप

चारों तरफ 

बिखरी पड़ी है लाशें 
कहीं पत्थरों में दबी हुयी तो  
कहीं मलबे में फंसी हुयी 
अकाश में मंडरा रहे है सैंकड़ो गिद्ध

पहाड़ों से

ऐसा जलजला आया 
तबाही का मंजर पसर गया 
प्रकृति के इस भयावह 
तांडव को लोग वर्षो याद रखेंगे

मिट्टी के सैलाब में
हजारों बह गएँ 
हजारों अपने 
अपनो को ढूंढते 
रह गए। 


देखो बसंत आया रे

गमकती बयार चली 
        नव प्रसून फुले रे 
            केशरिया वस्त्र पहन
                 फोरसिंथिया लहराया रे
                          देखो बसंत आया रे

हिम के दिन बीत चले
       सूरज बाहर निकला रे 
              रंग-बिरंगे रंगों में फिर 
                    ट्यूलिप मुस्कराया रे
                           देखो बसंत आया रे

खिल उठी कलि-कलि
        महक उठा चमन रे 
              रंग-बिरंगे फूलों की
                     खुशबु पवन चुराए रे
                             देखो बसंत आया रे

फूलों पर तितली मंडराये 
          पक्षी गीत सुनाये रे 
                 पेड़ो के संग मस्ती में
                         हवा बजाये तबला रे
                                देखो बसंत आया रे
  
गदराई हर डाल-डाल
        नेक्ट्रीन भी दमका रे 
                चैरी ट्री ने ओढ़े सुमन 
                      फूटा रंगों का झरना रे 
                               देखो बसंत आया रे।




पिट्सबर् (अमेरिका) में बसंत का नजारा देख कर तन-मन झूम उठा। १० दिन पहले यहाँ बर्फ गिर रही थी। तापमान माइनस तीन डिग्री पर था और आज चारो तरफ फूल खिल रहे है। घरो के सामने लोन में हरी घास की चुनर बिछ गयी  है। साइड वाक् फूलो से ढक गए है। चैरी,फोरसिथिया,ट्यूलिप,पीच ट्री, पियर ट्री, नेक्ट्रीन, ऐप्रिकोट, मैग्नोलिया के पेड़ फूलो से लद गए है। पत्तियों रहित टहनियाँ गुलाबी,सफ़ेद,नारंगी, लाल,बेंगनी नीले फूलो से ढक गयी है। लगता है प्रकृति खुद उत्सव मनाने लगी हो।

पक्षियों की मधुर आवाजे पेड़ो पर गूँजने लगी है।मेगनोलिया के गहरे लाल रंग के फुलो के परिधान में धरती नववधु सी लग रही है। सफ़ेद फूलो वाले ऐपरीकोट ट्री ऐसे लगते है जैसे सफ़ेद रेशमी पताकाऐं फहरा रही है। साइड वाक पर झाड़ियों की कतारों में फोरसिंथिया के पीले फूल खिले हुए है। घरो के सामने रंग-बिरंगे टूलिप फूलो का सोन्दर्य तो देखते ही बनता है। फूलो की खुशबु अपनी सौरभ से वायु को सुवासित कर रही है।लगता है जैसे पिट्सबर्ग  में नंदन कानन उतर आया है।