शनिवार, 28 जून 2014

मेरा स्वाभिमान


मेरी शादी की चुन्दड़ी में 
लगे सलमे-सितारे अब मेरी
आत्मा में चुभने लगे हैं 

लग्न और मुहूर्त में
बन्धे ये सारे बन्धन 
मुझे अब झूठे लगने लगे हैं 

मैं नहीं भूला सकती 
अपनी पीड़ा और अपमान 
जो उसने मुझे दिये हैं 

व्यथित शब्दों
के तीर अब मेरे ध्यैर्य की 
आख़िरी सीमा भी लांघ गये हैं 

मेरा स्वाभिमान भी
अब उसके अंहकार के लिए
खतरा बन गया है 

मैंने जितना
समर्पण का भाव रखा 
उतना ही वो निष्ठुर बन गया है 

मैं जीवन संगिनी
या सहभागिनी की जगह
बंदिनी बना दी गयी

कंकरीट में दबी
पगडण्डी की तरह मेरी
हर एक इच्छा दबा दी गयी

मैं अब इस बंधन से
मुक्त होकर अपना नया
जीवन जीना चाहती हूँ

पुरानी यादों को
अब मै हमेशा के लिए
दफना देना चाहती हूँ

अपनी शादी की
चुन्दडी को अब मैं 
उतार देना चाहती हूँ

उसमे लगे 
सलमे-सितारे अब मैं 
उधेड़ देना चाहती हूँ।

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