शनिवार, 28 जून 2014

मन में बसी है

जीवन के पैसठवे बसंत में 
गांव की यादें आज भी
आती है

पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है

याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का 
उछल-कूद मचाना

सज-धज कर पनिहारिनों का 
पानी भरने जाना और 
पायल का बजना

गडरिये का अलगोजा बजाना 
गायों  के गले में बन्धी 
घंटियों का बजना

सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना

गर्मियों में घर आये 
मेहमान को बाटका भर 
छाछ -राबड़ी का पिलाना 

गाँव की अनेको यादें 
आज भीजीवन के पैसठवे बसंत में 
गांव की यादें आज भी
आती है

पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है

याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का 
उछल-कूद मचाना

सज-धज कर पनिहारिनों का 
पानी भरने जाना और 
पायल का बजना

गडरिये का अलगोजा बजाना 
गायों  के गले में बन्धी 
घंटियों का बजना

सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना

गर्मियों में घर आये 
मेहमान को बाटका भर 
छाछ -राबड़ी का पिलाना 

गाँव की अनेको यादे
आज भी मन में बसी है
मुस्किल है जिन्हें भुलाना।

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