जीवन के पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
आती है
पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है
याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना
सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना
गडरिये का अलगोजा बजाना
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना
सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना
गर्मियों में घर आये
मेहमान को बाटका भर
छाछ -राबड़ी का पिलाना
गाँव की अनेको यादें
आज भीजीवन के पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
आती है
पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है
याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना
सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना
गडरिये का अलगोजा बजाना
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना
सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना
गर्मियों में घर आये
मेहमान को बाटका भर
छाछ -राबड़ी का पिलाना
गाँव की अनेको यादे
आज भी मन में बसी है
मुस्किल है जिन्हें भुलाना।
गांव की यादें आज भी
आती है
पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है
याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना
सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना
गडरिये का अलगोजा बजाना
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना
सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना
गर्मियों में घर आये
मेहमान को बाटका भर
छाछ -राबड़ी का पिलाना
गाँव की अनेको यादें
आज भीजीवन के पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
आती है
पचास साल हो गए गाँव को छोड़े
लेकिन अभी कल की जैसी
बात लगती है
याद आता है आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना
सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना
गडरिये का अलगोजा बजाना
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना
सावन की रिमझिम फुहांर में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना
गर्मियों में घर आये
मेहमान को बाटका भर
छाछ -राबड़ी का पिलाना
गाँव की अनेको यादे
आज भी मन में बसी है
मुस्किल है जिन्हें भुलाना।
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