रविवार, 22 जून 2014

समन्दर के किनारे

समन्दर के किनारे
देखा लहरें आ रही थी 
किनारे से टकरा कर जा रही थी
जीवन में दुःख-सुख भी तो
इसी तरह से आते-जाते हैं

समन्दर के किनारे
पड़ी रेत को मुट्ठी में उठाया
देखा कण-कण निकलता जा रहा है
जीवन भी तो इसी तरह क्षण-क्षण
बीतता जा रहा है

समन्दर के किनारे
पड़ी सीपियों को देखा जो
अपना अनमोल मोती खो चुकी थी
मानव जीवन भी तो अनमोल है जिसे
हम व्येर्थ में जा रहे हैं

किनारे से टकराती
पीछे से लहर की आवाज आई
मै जीवन की बाजी जीत गयी
समंदर बोला- अब लौट जा
तुम्हारी अवधि बीत गयी। 





































जब हम गंगा में

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