मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

अमेरिका मे होली

अमेरिका मे होली है
लेकिन यह कैसी होली है

न कोई ढोलक 
न कहीं मजीरे
न कहीं रंगोली 
न चौराहे पर जली  होली है 
फिर यह कैसी होली है

न कही भांग 
न कही ठंडाई
न चंगो की थाप
न कोई अक्षत रोली है 
फिर यह कैसी होली है

न साली का मजाक 
न समधिन का मिलाप 
न देवर की चुहल बाजी 
न भाभी की ठिठोली है 
फिर यह कैसी होली है 

न गुझियों की महक 
न हलवे की खुशबु 
न गालों पर गुलाल
न कोई हमजोली है 
फिर यह  कैसी होली है 

अमेरिका मे होली है
फिर यह कैसी होली है। 






















































`

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

प्रेम-पत्र

आओ एक बार
फिर से ताजा करे पुरानी यादों को
और लिखे प्रेम-पत्र एक दूजे को

खुशबू से भरे
प्रेम-पत्र में फिर से लिखे
प्यार की बाते एक दूजे को

फिर से झूमें
तन-मन और खिल जाए
कली -कली पढ़ कर प्रेम-पत्र को

आँखों में चंचलता
होठों पर मुस्कान फिर से
लौट आये पढ़ कर प्रेम-पत्र को

बंद लिफाफा में
भेजे प्रेम-पत्र गुलाब के
फूलों के साथ पहले की तरह

करेंगे इन्तजार
डाकिये का गली के मोड़ पर
पहले की तरह

आओ फिर से
लिखे प्रेम-पत्र
एक दूजे के नाम

ताजा करे
पुरानी यादें
छोड़े दूजे काम।































देश का महानगर


पावन गंगा

स्वर्गलोक से भूलोक में चली आई गंगा                                                                                                         
कर निनाद पहाड़ों  में बहती चली गंगा                                                                                                        

जाति- धर्म  से  बंधकर  नहीं  रही गंगा
शीतल-निर्मल  जल बहाती चली गंगा

ऋषियों की  तपस्थली  सदा  बनी गंगा
जन-जन के कष्ट हरे  ममता मयी गंगा

वसुंधरा को हरित बना बहती रही गंगा
जंगल में मंगल करती बढती रही गंगा

तीर्थ बने नगर सभी जहाँ से निकली गंगा
जन शैलाब उमड़ पडा जहाँ संगम बनी  गंगा

बहना ही जीवन जिसका रुकती नहीं गंगा
कागद्विप में जाकर  सागर में मिलती गंगा

लेकिन अब अपनी पहचान खो रही  गंगा
अमृत बदला जहर में अब सूख रही  गंगा

मत आहत करो प्रकृति कहती सबसे गंगा
वरना एक दिन जलजला फिर लाएगी गंगा। 















दिल में बसा है गांव

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव

उस मय गांव में केवल
बैल गाड़ियां चलती
 बहुत दूर कच्ची सडक पर
 कभी - कभार ही बस मिलती

पांच मील दूर जाकर
ईन्तजार करना पड़ता
तभी जा कर कोई
बस में चढ़ पाता

जब भी मेहमान आता
मौहल्ला खड़ा हो जाता
दूध-दही से घर भर जाता
सारा गांव मिलने पहुँच जाता

शाम पड़े पूरा मोहल्ला
रेडियो सुनने आ जाता
देर रात तक अलाव के पास
खूब बातों का दौर चलता

बेटे-बेटियों के विवाह में
गाँव ख़ुशी में डूब जाता
गांव में बेटी-बहु को
इज्जत से देखा जाता
                     
गणगौर के मेले में  
बैलों को दौड़ाया जाता              
होली में गले मिल कर
प्यार से रंग लगाया जाता

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव।

मांडवी

तुलसीदास जी ने रामायण में
मांडवी के त्याग और विरह
वेदना का उल्लेख नहीं किया

उन्होंने केवल सीता के त्याग
और लक्ष्मण के भ्रातृ प्रेम का
ही प्रमुखता से वर्णन किया

मैथली शरण गुप्ता ने भी
साकेत में मांडवी के त्याग
को महत्त्व नहीं दिया

उन्होंने केवल उर्मिला की
विरह वेदना का ही
उल्लेख किया

सीता को तो वन में रह कर भी
अपने पति के साथ रहने का
अवसर मिला

लेकिन मांडवी को तो अयोध्या
में रह कर भी पति के सामीप्य
का सुख नहीं मिला

भरत चौदह साल तक परिवार
से दूर जंगल में पर्ण- कुटी
बना कर अकेले रहे

फिर इतिहास में मांडवी के
त्याग को सीता के त्याग से
कमतर क्यों आंका गया ?

मांडवी की विरह वेदना को
उर्मिला की विरह वेदना से
कमतर क्यों समझा गया ?

एक दिन फिर कोई
तुलसीदास जन्म लेगा
फिर कोई मैथली शरण आयेगा

जो मांडवी के दुःख दर्द को
नए आयाम और
नए अर्थों में लिखेगा।


























स्वर्गलोक से भूलोक में चली आई गंगा

होली खेले


नया करे
कुछ इस होली में 
 तन-मन सब रंग जाये

गले लगाए
हर साथी को
राग द्वेष सब मिट जाये


गीत लिखे
कुछ ऐसा जमकर
सब के मन को भा जाये


भर दे प्यार
सभी के दिल में  
जीवन उत्सव बन जाये


 सतरंगी
रंगों में घुल कर 
 सबकी साँसों में महके 

भेद-भाव
के रंग मिटा कर
मानवता से चहरे चमके


 स्नेह-प्यार
का घट भर कर
सब के संग खेले होली


जैसे कान्हा ने 
वृन्दावन  में
राधा के संग खेली होली। 

























































पिट्सबर्ग तुम याद आवोगे

मुझे  पिट्टस बर्ग  अच्छा लगा 
गिरते बर्फ के फोहों के बीच भी
मुझे सुखद आभास होने लगा।
                                                            पश्चिम की संस्कृति को देखने 
समझने का अवसर जो मिला
  कुछ अच्छा तो कुछ बुरा लगा। 

अच्छा    लगा   रास्ते  चलते सभी का
मुस्करा कर हाय कहना और सभी को
थैंक्स  बोलकर  आभार  प्रकट करना।

सड़क पर पैदल चलते यात्रियों को
  गाडी रोक कर रास्ता पार कराना 
   बूढ़े और अपाहिजों को पहल  देना। 


अच्छा लगा साईड वाक पर दौड़ना
जिम में  जा कर   ब्यायाम  करना
स्वास्थ्य के प्रति   जागरूक रहना।

मेहनत और सच्चाई से सुखपूर्वक
 आनंदमय    जीवन   यापन करना 
यथासंभव दूसरों की सहायता करना।

लेकिन कुछ बुरा    भी लगा 
तुलना कर देखा तो मेरा देश
एक   पायदान  ऊपर  लगा। 


लेकिन   कुछ भी हो पिट्स बर्ग
मेरी यादो में हमेशा बसा रहेगा
   मुझे याद  तो आता  ही   रहेगा। 
























खुशियों की सीमा

तुम्हारे साथ साथ
चलती है मेरी
खुशियों की सीमा

तुम चलते-चलते
जहाँ पहुँच कर
रुक जाती हो
वहीँ पर रुक जाती है
मेरी खुशियों की सीमा

तुम पीछे मुड़ कर
जहाँ तक देखती हो
वहीँ तक होती है
मेरी खुशियों की सीमा

तुमसे शुरू हो कर
तुम्ही पर ख़त्म होती है
मेरी खुशियों की सीमा।



























दुःख और दर्द


अपने दुःख और दर्द को
कम करना है तो दूसरों के
दुःख और दर्द को देखो

एक दिन किसी सरकारी
अस्पताल के जनरल वार्ड का
चक्कर लगा कर देखो

तब समझोगे दुःख क्या होता है
कैसे लोग दुःख-दर्द को साहस
और धीरज से झेलते है

उन तंग गलियों का चक्कर लगाओ
जहाँ ठन्डे चूल्हे पर रखी खाली पतीली
से बच्चो को बहलाते है

जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर
माँ के सीने से दूध के लिए तब
समझोगे अभाव क्या होता है

दुःख तो सभी को होता है
किसी को कम तो किसी को
ज्यादा झेलना पड़ता है

हमें अपने दुःख-दर्द और अभाव का
रोना छोड़ कर सामर्थ्यानुसार
दूसरों का भला करना चाहिए

जरूरतमंद की सहायता और
बीमार का इलाज कराना चाहिए
दूसरों के दुःख को बाँटना चाहिए।
                     


































































जीवन रथ की वल्गा

चौबीसों घंटे ओक्सीजन
       मास्क लगाए रखना
          औषधियों के डिब्बो से
             हर समय घिरे रहना 

ओक्सिमिटर से सेचुरेशन
    लेवल चेक करते रहना
      कन्सेंनट्रेटर और सिलेंडर
        को ऐडजस्ट करते रहना

दिनचर्या के सभी काम
प्रतिदिन स्वयं करना
      खाना बनाना,घुमना, योग
     और प्राणायाम सभी करना                                                                 

मै आश्चर्य से देखता रहता हूँ
तुम्हारा ध्येर्य और विस्वास 
                   सभी करते है तुम्हारी प्रशंसा
              देख तुम्हारी हिम्मत और साहस       

    लगता है  तुम्हारे जीवन का
झरना पाताल लोक से बहता है
                  तुम्हारे जीवन रथ की वल्गा
             स्वयं प्रभु हाथ में थामे रखता है। 
 





आभार प्रभु आपका



हे करुणाकर !
मै आपकी करुणा
   पाकर धन्य हो गया प्रभु ! 

मै निर्मल मन से
करता रहा आपसे प्रार्थना
हर समय जपता रहा आपका नाम 
कहता रहा अपने मन की बात आपको प्रभु !

सुबह शाम आपके
चरणो में अश्रु सुमन समर्पित
करता रहा और कातर स्वर से कहता रहा --
जीवन संगिनी को स्वस्थ करो प्रभु !

हे अन्तर्यामी !
अपरिमित दया आपकी 
जो स्वीकार किया आपने मेरा आग्रह 
कर दिया उसको स्वस्थ और निरोग प्रभु !

आज आपने मेरी
अभिलाषा को पूर्ण कर दिया
जीवन में फिर मधुमास ला दिया
  सब कुछ आपकी अहेतुकि कृपा प्रभ !

होली हाइकु

होली का रंग
बिखरा चहुँ ओर 
बेबस मन। 

धरा फागुनी 
झूम रही टोलियाँ 
रंग बरसे । 

फागुनी हवा 
पगलाई कोयल 
तराने गाये। 

फागुन आया 
भीगे कंचन अंग 
मन हर्षाया। 

चाँदनी रात 
फागुन की तरंग 
आ साथ चल। 

गोकुल दंग 
राधा किसन संग 
रास रचाये।  

पीया मानेना 
करके बरजोरी 
अंग लगाए।

लगाओ आज
प्यार का गुलाल
मलमल के। 





































































विरासत

क्या हमने कभी
सोचा है कि है कि हम
किधर जा रहे है?

एक पेड़ लगाने की
नहीं सोचते और जंगलो
को काटते जा रहे हैं

वायु मंडल में बारूद
और जहरीली गैसे छोड़ कर
वायु को प्रदुषित कर रहे है

नदियों में गंदा पानी
और फक्ट्रियों के केमिकल
बहा कर नदियों को गंदा कर रहे है

वाहनों के आत्मघाती
धुंए से ओजोन की परत में
छेद करते जा रहे है

समुद्रो में उठता जलजला
दरकते पहाड़ और फटती जमीन
हमें चेतावनी दे रहे हैं

बादलों का फटना
ग्लोबल वार्मिंग,भूकम्प हमें
सावधान कर रहे हैं

फिर क्यों नहीं हम
अपनी प्यारी धरती को बचाने
की सोच रहे हैं ?

क्या हम अपनी आने वाली
पीढ़ी को यही सब विरासत में
देने जा रहे हैं ?


नीम का पेड़

नीम के पेड़ की
शीतल बयार
शुद्ध हवा

पंछियों का बसेरा
गिलहरियों का फुदकना
चिड़ियों का चहचहाना

लल्लन का पालना
छुटकी का झुला
कोयल का घोंसला

सब मेरे देखते-देखते
अतित बन गया और एक
पेड़ धराशाही हो गया

कुल्हाड़ी के लगते ही
पेड़ कांप उठा
पत्ती-पत्ती सिहर उठी

आरे के चलते ही पेड़ मे
दर्द का दरिया फुनगी से
जड़ो तक बह गया

और मेरे देखते-देखते
एक हरे-भरे पेड़ का
अंत हो गया।






































गाँव की सर्दी

सर्दियों में जब कभी भी
गाँव की तरफ जाता
गाँव का भोगा बचपन सपने
जैसा सामने आ जाता


बचपन के वो दिन जब
जाड़े  की सर्दी में ठिठुरते
हम सब बच्चे अल सुबह
बड़ी  माँ के घर चले जाते


सूरज के सामने वाले
चबूतरे पर कम्बल और
रजाई में दुबक कर सभी
एक साथ बैठ जाते


"सुरजी बाबा सुरजी बाबा
तावड़ो ही काढ़ थारा
छोरा-छोरी सींया ही मरै"#
की जोर-जोर से रट लगाते


सूरज की पहली किरण
ज्योंही चबूतरे की दिवाल
पर उतरती हम सभी के
चहरे खिल उठते


बड़ी माँ ठंडी मिस्सी रोटी
पर तेल लगा गरम करती
और हम सबको गरम-गरम
खाने को देती


अब न वो दिन रहे
न तेल लगी रोटी रही
न देने वाली बड़ी माँ रही
लेकिन यादेँ है आज भी ताज़ी।


# हे सूर्य भगवान धूप निकालो, तुम्हारे बच्चे सर्दी से मर रहे हैं।




















































बीत गए वो दिन

जब से इन्टरनेट आया 
पुस्तकों का अलमारियों से 
निकलना ही बंद हो गया

पुस्तकें झाँकती रहती है
बंद आलमारियों के शीशों से
जैसे कोई कर्फ्यू लग गया

अब तो कम्पूटर पर
क्लिक किया और जो पढ़ना
वो स्क्रीन पर खुल गया

लेकिन पुस्तकें पढ़ने का 
जो आनन्द था वो आनन्द
कम्पूटर पर कहाँ रह गया

पुस्तकें कभी गोदी में
तो कभी सीने पर रख पढ़ते
नींद आती तो मुहँ ढक सो जाते

पुस्तकें किसी के
हाथों से गिरती तो उठा कर 
देने के बहाने रिश्ते बन जाते

पुस्तकों का आदान-प्रदान
  बांधता प्रेम की डोर से
        माँगने के भी बहाने बन जाते  

पुस्तकों में निकलते 
 फूल और महकते इत्र के फोहे  
जो दिल की धड़कनों को बढ़ा देते

अब बीत गए वो दिन
सब गुजरे जमाने की
बाते  हो गयी

अब तो पुस्तकें 
केवल अलमारियों की
शोभा बन कर रह गयी। 















































विषमता

पेट भरते ही पक्षी दाना 
 छोड़  कर उड़ जाते हैं    
      वो भविष्य की नहीं सोचते 
     केवल वर्तमान में जीते हैं 

इंसान वर्तमान में नहीं
 भविष्य में जीता है और
  आने वाले कल की चिंता
सबसे पहले करता है   

 इसी कारण पक्षियों में   
आज भी समानता है     
और इन्सानों में अमीर   
गरीब जैसी विषमता है  

मानव को प्रकृती ने     
  खुले हाथों से दिया है      
  सबके लिए सामान        
रूप से दिया है              

         काश ! हम सब मिलझुल कर 
दुनिया में रह पाते        
    दुनिया से इस विषमता  
   को मिटा पाते  .              

\     





































बेटा और बेटी

बेटा 
जब बड़ा
 हो कर आसमान में
     उड़ान भरता है 
तो माँ-बाप
सोचते है
 काश !
आसमान थोडा
   और ऊँचा होता 


बेटी
जब बड़ी
हो कर पँख
 फङफङाती है तो 
 माँ-बाप
 सोचते है
 काश !
घर की दीवारें
 थोड़ी और ऊँची  होती। 



















माँ और बाबूजी

बाबूजी
जब खाना खाने बैठते तब माँ
आसन बिछा कर पाटा लगा देती

बगल में
एक लोटा और गिलास
पानी का भर कर रख देती

बाबूजी
लोटे से हाथ धोकर
शांत भाव से आसन पर बैठ जाते

माँ
थाली में खाना परोस कर
बगल में पंखा झलने बैठ जाती

बाबूजी
मनुहार के साथ खाना खाते हुए
माँ को घर-बाहर की बाते बताते

बाबूजी
खाना खाने के बाद जब  हाथ पौंछते 
माँ गमछा  पकड़ा  देती

माँ
जब जूठी थाली उठाती तो उसके चेहरे
पर एक संतोष का भाव होता

माँ
ही समझ पाती उस संतोष के आनंद को
दुसरा नहीं समझ पाता

आज
भाग दौड़ भरी जिंदगी में क्या कोई  इस
आनंद की कल्पना भी कर सकता है ?






























फूल जो पेड़ का सौंदर्य है, उसकी सोभा है, लेकिन विक्टोरीया में घूमते लोग कटेली चम्पा के पेड़ पर लगे फूल को ढूँढ कर तोड़ लेते है। थोड़ी देर फूल दो चार हाथो में घूमता है और फिर नोच कर डाल  दिया जाता है, पांच मिनट में फूल का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। 





प्रेसबी की नर्स "रोज "

प्रेसबी की नर्स  "रोज "
मनीष से  बाते कर रही थी
बगल मे खड़ा डॉक्टर
काफ़ी देर से  सुन रहा था

उसने रोज से पूछा -
क्या तुम इसे जानती हो ?
रोज तपाक से बोली -हाँ
यह मेरा छोटा भाई है

मै थोड़ी ज्यादा गौरी हुँ
ये थोड़ा कम गौरा है
लेकिन मै भी अब
इसकी तरह होने लग गयी हूँ

थोड़े दिनों में 
हम दोनो का रंग
एक जैसा हो जाएगा
फिर तुम नही पूछोगे

और उसी के साथ "रोज"का
चिर परिचित हँसी का
एक जोरदार ठहाका
डॉक्टर झेंप कर हँसने लगा। 
                     
























कलैण्डर नहीं जीवन बदलो

प्रत्येक महीने हम
बदलते रहते हैं कलैन्डर
लेकिन नही बदलते जीवन

तारीख़े लाल घेरों
मे ही क़ैद रह जाती है
मुट्ठी से बालू  की तरह
खिसक जाता है जीवन

न जाने कितनी
पूनम की राते
दरवाजे की सांकल
बजा कर ही लौट जाती है        

पूरब की बंसन्ती हवाऐ
बिना मन को झकझोङे
ही चली जाती है

चैत की औस-भीगी सुबह
हमारी अंगड़ाई से पहले ही
निकल जाती है

आजकल तो धूप भी
बंद दरवाजों को  देख कर
सीढ़ियों से ही लौट जाती है

जीवन का आनन्द लेना है 
तो प्रकृति से जुड़ना होगा
किसी नौका में बैठ 
नदी
की सैर पर जाना होगा 

पहाड़ की ऊँची 
चोटी पर चढ़ना होगा
बादलो की कोख से निकलते

सूर्योदय को देखना होगा 

फुलो पर मंडराते भँवरों
का गुंजन सुनना होगा 
डूबते हुए सूर्यास्त का
नजारा देखना होगा 

यदि जीवन का सच्चा आनंद लेना है 
तो कलैण्डर नहीं जीवन को


भी बदलना होगा।






























तब जाकर नेता बने


जो  कानून से नहीं डरे
बड़े से बड़े घोटाले करे
भ्रस्टाचार में नाम करे
चोरी स्मगलिंग सब करे 
                         जब कोई ऐसे काम करे
                             तब जाकर नेता बने

जातिवाद का शंख बजाये
क्षैत्रवाद का भूत जगाये
सम्प्रदायों को भड़का कर 
दंगा और फसाद कराये 
                          ऐसे जब कोई काम करे
                              तब जाकर नेता बने

सरकारी धन का गबन करे
रिश्वत खाये  बेईमानी करे
जेल में जाकर अनशन करे
बाहर निकल भाषण करे
                            जब कोई ऐसे काम करे
                                तब जाकर नेता बने

श्रमिको के संगठन बनाये
कारखानों को बंद कराये  
रेले  रोके बसे जलाए 
तोड़-फोड़ और आग लगाए
                              जब कोई ऐसे काम करे
                                  तब जाकर नेता बने

जनता  में  दशहत फैलाए
चुनावों में फर्जी वोट डलाए
असली वोटर जब भी आए
उन्हें मार कर  दूर भगाए
                              जब कोई ऐसे काम करे
                                   तब जाकर नेता बने





























सुनहरे मोती

किसी की नजरों से गिरने में वक्त नहीं लगता,
मगर किसी के दिल में बस कर दिखाओ तो जाने। 

किसी से प्यार के वादे करने में वक्त नहीं लगता,
मगर वादा कर के उसे निभाओ तो जाने।  

अपने मतलब से तो सभी गले मिलते है,
मगर किसी को बिना स्वार्थ गले लगाओ तो जाने।  

सुख में तो सभी साथी साथ निभाते है,
मगर दुःख में साथ निभा कर दिखाओ तो जाने।  

हँसते बच्चे को तो सभी गोद उठाते है,
मगर किसी रोते हुए बच्चे को हँसाओ तो जाने। 

तुम हिन्दू-मुस्लमान कुछ भी बनो
मगर  पहले इन्शान बन कर दिखाओ तो जाने।  


























मंत्री जी की दीक्षा

परम्परानुसार नया मंत्री शपथ
ग्रहण के बाद प्रधान मंत्री जी* से
आशीर्वाद लेने आता है

प्रधान मंत्री जी उसे अर्थशास्त्र
का ज्ञान देते हुए जीवन में
अर्थ का महत्त्व बताते है

कुर्सी आज तुम्हारे साथ है
कल नहीं भी रहे लेकिन अर्थ
जीवन में हर पल साथ देता है

इसलिए कुर्सी रहते हुये
अर्थ का आदर करना सीखो
ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता है

मत्री अपने कार्यकाल में प्रधान
मंत्री जी की सलाह को तहे दिल
से पालन करता

कम से कम समय में
बड़े  से बड़े घोटालों को अंजाम
देता है और अर्थ की व्यवस्था करता है

एक-एक घोटाला अरबो में करता है
आठ-दस पीढ़ी तक का इंतजाम
एक बार में कर लेता है

पकड़े जाने पर विपक्ष और न्यायालय के
दबाव में मंत्री को हटा कर नए मंत्री को
शपथ दिलाइ जाती है

परम्परानुसार नया मंत्री शपथ ---------

*हमारे प्रधान मंत्रीजी एक अच्छे अर्थशास्त्री है ,यह कविता व्यगं मे लिखी गयी है।







































कावड़िये

सावन का महीना लगते ही
सड़कों पर दौड़े कावड़िये
 रंग -बिरंगे  कपड़े  पहने          
जय शम्भु बोले कावड़िये

फूलों और मालाओं से
कावड़ सजवाये कावड़िये
कलशो में भर गंगा जल
पूजा  करवाते  कावड़िये                      
 बम बम बोले कावड़िये

कन्धों पर रख कावड़ को
मस्ती में चलते कावड़िये
मीलो पैदल चल -चल कर
शिव पूजन करते कावड़िये
 बम बम बोले कावड़िये

मार्ग  के कंकर-पत्थरों से
नहीं घबराते कावड़िये
खून बहे पांवों से चाहे
नहीं रुकते ये कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये

लगा भोग शंकर के
भांग घोटते कावड़िये
खाते-पीते मस्ती करते
चलते जाते कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये

सुन्दर-सुन्दर शिविरों में
थकान मिटाते कावड़िये
 हलवा-पुड़ी,खीर-जलेबी
 भोग लगाते कावड़िये
 बम बम बोले कावड़िये

अबकी सावन गंगा को
स्वछ करेंगे कावड़िये
अगले सावन फ़िर बोलेंगे
हर हर गंगे कावड़िये
बम बम बोले कावड़िये।







































जुम्मन की स्त्री

आज युग
विज्ञान और प्रोद्योगिकी में
बहुत आगे बढ़ गया है

अन्तरिक्ष में स्टेशन बन गए है
जहाँ वैज्ञानिक अन्य ग्रहों पर
जीवन  की खोज कर रहे हैं

इंटरनेट और मोबाइल ने
दूर संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है
पूरी दुनिया एक साथ जुड़ गयी है

मंगल ग्रह पर पानी को खोजा जा रहा है
कृत्रिम बादलो से बरसात की जा रही है
समुद्र से तेल निकाला जा रहा है

द्रुतगामी वायुयान बन गए है
जिससे कम समय में एक देश से दुसरे देश
द्रुतगति से आना जाना संभव हो गया है

लेकिन इन सबसे जुम्मन की स्त्री को क्या लेना-देना
उसे तो रोज सड़क के किनारे बैठ कर
भरी दुपहरी में पत्थर ही तोड़ना है

और ठेकेदार की बुरी नजरों से बचते हुए
अपने बच्चे को दूध पिलाने के बहाने
किसी पेड़ की छांव में सुख ढुंढना है।














































            

शहीद की पीड़ा


मै इस देश की
सीमा पर तैनात एक 
अदना सा सिपाही हूँ

देश की
रक्षा करते हुए
आज शहीद हो गया हूँ   

मैंने अभी तक
जीवन के पुरे नहीं
किये हैं तीस बसंत 

पच्चीस बर्ष
की उम्र मे ही जीवन 
का हो गया अंत

मै जानता हूँ
मेरे  लिए कोई
शोक सभा नहीं होगी

कोई मौन
नहीं रखा जाएगा
कोई झंडा नहीं झुकेगा 

यहाँ तक कि
मेरे गाँव में मेरा कोई
स्मारक भी नहीं बनेगा

एक सिपाही की
मौत से किसी को क्या
फर्क पडेगा ?

हाँ ! फर्क पडेगा
मेरे बच्चों को जिनका
मै बाप था

मेरी पत्नी को
जिसका मै पति था 
मां को जिसका मै बेटा था

और .....कल के
अखबार के कोने मे 
एक छोटी सी खबर छपेगी

कश्मीर घाटी में
आतंकियों से मुकाबला करते    
तीन सिपाही शहीद। 




































झमाझम बारिश में


                                    करलो मन की बात 
                                       झमाझम बारिश में   

     कागज़ की एक़ नाव बनाओ       
छोडो     उसको      पानी  मे 
भीगने    का     मजा   लेने 
 कूदो    छपाक   से पानी में  

                                           करलो मन की बात 
                                            झमाझम बारिश में


   आई   पुरवाई  मदमाती  
मिल कर भिगो पानी में
 सब   मिल   कर  गाओ
 मल्हार  भीगते पानी  में

                                          करलो मन की बात  
                                          झमाझम बारिश में 


 ठेले  पर  भुट्टे भुनवा कर 
 खाओ   बरसते   पानी में
  रैनी डे   की  छुट्टी    होगी 
   नाचो     कूदो   पानी   में 

                                      करलो मन की बात
                                       झमाझम बारिश में

गरमा-गरम चाय पकौड़ी
मिल कर  खाओ पानी में
  मम्मी   जब  डांट  लगाए
 मत  भिगो   तुम पानी में

                                         करलो मन की बात
                                           झमाझम बारिश में

 गीली मिटटी घर बनाओ 
भीगो  बरसते   पानी में,
सर्दी लगे   नाक बहे तब 
 खाओ हलवा बिस्तर में
                                         करलो मन की बात
                                          झमाझम बारिश में।












                               

































































   करलो मन की बात 
                                       झमाझम बारिश में 

     कागज़ की नाव बनाओ       
छोडो  उसको  पानी  मे 
भीगने  का  मजा  लेने 
 कूदो छपाक से पानी में

                                           करलो मन की बात 
                                            झमाझम बारिश में


   आई   पुरवाई  मदमाती
मिल कर भिगो पानी में
 सब   मिल   कर  गाओ
 मल्हार  भीगते पानी  में

                                          करलो मन की बात  
                                          झमाझम बारिश में 
 ठेले  पर  भुट्टे भुनवा कर 
 खाओ  बरसते  पानी में
  रैनी डे  की  छुट्टी    होगी 
   नाचो    कूदो  पानी   में 

                                      करलो मन की बात
                                       झमाझम बारिश में

गरमा-गरम चाय पकौड़ी
मिल कर  खाओ पानी में
  मम्मी जब  डांट  लगाए
 मत  भिगो तुम पानी में

                                         करलो मन की बात
                                           झमाझम बारिश में

 गीली मिटटी घर बनाओ 
भीगो  बरसते   पानी में,
सर्दी लगे   नाक बहे तब 
 खाओ हलवा बिस्तर में।
                                         करलो मन की बात
                                          झमाझम बारिश में।























पूजा राणा


केवल नाम ही नहीं है
 तुम्हारा पूजा
जग में कोई भी नहीं है
तुम जैसा दूजा

तुम चमको जहाँ में
इस तरह कि 
तुम्हारा नाम पूजा
जाए हर जगह

तुम खिलो पूनम के
सपनों की तरह
खुशबुओं में नहाओं 
फूलों की तरह

कल्पना चावला बन
आसमान में ऊड़ो
झाँसी की रानी बन
हुँकार भरो

मदर टेरेसा बन
समाज सेवा करो
दुर्गा बन इतिहास में
नाम अमर करो

फैले तुम्हारा यश
नील गगन सा
तुम्हारी कीर्ति  का
विस्तार हो ब्रह्मांड सा। 
                                   



केवल नाम ही नहीं है
 तुम्हारा पूजा
जग में कोई भी नहीं है
तुम जैसा दूजा

तुम चमको जहाँ में
इस तरह कि 
तुम्हारा नाम पूजा
जाए हर जगह

तुम खिलो पूनम के
सपनों की तरह
खुशबुओं में नहाओं 
फूलों की तरह

कल्पना चावला बन
आसमान में ऊड़ो
झाँसी की रानी बन
हुँकार भरो

मदर टेरेसा बन
समाज सेवा करो
दुर्गा बन इतिहास में
नाम अमर करो

फैले तुम्हारा यश
नील गगन सा
तुम्हारी कीर्ति  का
विस्तार हो ब्रह्मांड सा। 



























































बचपन लौट आया


चाँद सितारों
ने देखा
अप्सराओं  ने
भी देखा

एक नन्ही परी
  धरती पर उतर आई
मेरे घर की
चौखट जगमगाई

खुशियों की
बहार छाई
परी आयशा बन 
घर में आई

आँखों में तारे
भर लाई
घर में सबका
बचपन लाई

हम लाये 
 उसके लिए खिलौना
वो बन गयी
 हम सब का खिलौना।  

































प्रभु अगर ऐसा हो जाता

प्रभु अगर ऐसा  हो जाता
मै  छोटा पक्षी बन जाता
आसमान में ऊँचे उड़ कर
कलाबाजियाँ मै भी खाता


पेड़ो पर मीठे फल खाता
झरनों का मै पानी पीता
स्कूल से हो जाती छुट्टी
होमवर्क नहीं करना पड़ता


खेतो-खलिहानों में जाता
नदी-नालों के ऊपर उड़ता
उड़ कर देश-प्रदेश देखता
नानी के घर भी उड़ जाता


उड़ने पर कोई रोक न होती
आसमान मेरा घर होता
जब तक मर्जी उड़ता रहता
साँझ ढले घर पर आ जाता


मीठी वाणी बोल-बोल कर
सबके मन को मै मोह लेता
बच्चों को मै दोस्त बना कर
रोज उन्हें मीठे फल देता।







































मेरी प्यारी दादी जी


अमेरिका से मुझसे मिलने
आई मेरी दादी जी 
सुन्दर कपडे और खिलौने 
लायी मेरी प्यारी दादी जी

बड़े प्यार से मुझे सुलाये 
मेरी प्यारी दादी जी 
लौरी गाये गीत सुनाये 
मेरी प्यारी दादी जी

सेव-पपीता मुझे खिलाये
मेरी प्यारी दादी जी 
ताजे फल का जूस पिलाये
मेरी प्यारी दादी जी 

लुका-छिपी खेल खिलाये
मेरी प्यारी दादी जी
मैं  रूठूँ तो मुझे मनायें 
मेरी प्यारी दादी जी। 


(आयशा १४ महीने की  हो गयी, तब उसके दादी जी ने उसे देखा है। दादी जी कहती है कि उनका बचपन लौट आया है। आयशा भी अपनी दादी जी गोदी में  खूब खेलती है।)  




सबको अच्छा लगता चाँद

बच्चों का यह चन्दा मामा
नील  गगन से निचे आता
लोरी गाकर  उन्हें सुलाता
तारों  को संग लाता  चाँद
 सबको अच्छा लगता चाँद

अमीर-गरीब  का भेद नहीं
छुआ- छुत  की  बात नहीं
एकनजर और एकभाव से
   सब  के घर  में आता चाँद
सबको अच्छा लगता चाँद

रोज चांदनी के संग आता
अंधियारे में  राह दिखाता
  लेकर  बारात सितारों की  
   पूनम को बनठन आता चाँद     
 सबको अच्छा लगता चाँद

ईद मनाओ या करवा चौथ
करे  चाँद  का  दर्शन लोग
गीता-कुरान  का भेद नहीं
सब के मन को भाता चाँद
  सब को अच्छा लगता चाँद।

















































एक नन्ही परी


एक नन्ही परी सी 
गुलाब की कली सी
अपनी भाषा में कुछ बोलती 
हँसती मुस्कराती मधु घोलती

एक नन्ही परी  सी
मिसरी की डली सी
लघु पांवों पर खडी होती
पकड़ खाट थोड़ी  चलती

एक नन्ही परी सी
प्यारी राजदुलारी सी 
दिन में किलकारियां भरती
गोदी में अठखेलियाँ करती 
   
एक नहीं परी सी
हँसती सूरजमुखी सी
  अति कोमल नाजुक सी
  भोली-भाली  गुड़िया सी

एक नन्ही परी सी
 प्यारी छुई-मुई सी
बाहर जाने को खूब मचलती
 जाकर बाहर खुश  हो जाती 

एक नन्ही परी सी
  कोई नहीं आयशा सी।  
























































































































































  

आयशा उठो -आँखे खोलो


आयशा !
उठो आँखे खोलो
देखो कौन-कौन
आया है
सूरज तुमको
उठाने के लिए
   खिड़की से झांक रहा है

किरणें तुमको
उठाने के लिए
   पायल खनका रही है

चिड़ियाँ तुमको
उठाने के लिए
मधुर गीत गा रही हैं 

गुलमोहर तुम्हारे
कदमो के लिए
सुर्ख फुल बिखेर रहा है

मोगरा तुम्हारी
साँसों में बस जाने
के लिए महक रहा है

सभी कायनात  
तुम्हारी आँखे खुलने  
के इन्तजार में है

आयशा उठो
अब अपनी
आँखे खोलो।