बुधवार, 16 अप्रैल 2014

दिल में बसा है गांव

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव

उस मय गांव में केवल
बैल गाड़ियां चलती
 बहुत दूर कच्ची सडक पर
 कभी - कभार ही बस मिलती

पांच मील दूर जाकर
ईन्तजार करना पड़ता
तभी जा कर कोई
बस में चढ़ पाता

जब भी मेहमान आता
मौहल्ला खड़ा हो जाता
दूध-दही से घर भर जाता
सारा गांव मिलने पहुँच जाता

शाम पड़े पूरा मोहल्ला
रेडियो सुनने आ जाता
देर रात तक अलाव के पास
खूब बातों का दौर चलता

बेटे-बेटियों के विवाह में
गाँव ख़ुशी में डूब जाता
गांव में बेटी-बहु को
इज्जत से देखा जाता
                     
गणगौर के मेले में  
बैलों को दौड़ाया जाता              
होली में गले मिल कर
प्यार से रंग लगाया जाता

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव।

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