बुधवार, 16 अप्रैल 2014

गाँव रो पींपळ


गँवाई कुवै के
जिवणे पासै हो पीपंळ
अर पिपंळ  रे पसवाड़े हो सती रो देवरो 
लुगायां दादी रो दैवरो धौकती 

गौर-ईशर री जद सवारी
कूवै पर आंवती जणा गाँव री
छोरया-छापरयां पींपळ रै हैठे
भैळी  हुय र गीत गांवती

नुवों ब्याव हुयोड़ो जोड़ो
सती दादी रै गठजोड़े री
जात देवण आंवतो जणा
पींपळ री छियां आशीष देवंती

बैसाख रे महीना में
भोरान-भोर गाँव री लुगायाँ
पीपळ सींचण ने आंवती
गट्ट पर बैठ'र  कांण्या कैंवती

टाबरिया रमता पींपळ री 
छियाँ मांय दड़ी र गेडियो
लगाता लंम्बा-लंबा टौरा 
जेठ-असाड री गरमी रे मायं

पींपऴ के नीचे हुवंती
नारा-गाड्या री दौड़ अर
देखतो पुरो गाँव गौर के
मंगरीया मांय

पण आज गँवाई कुवै के 
पास कौनी रियों पिंपळ 
पण जका देख्या ही कौनी पिंपळ 
बानै कियां याद आवेगी ऐ बातां 

आसीस रे ओळावै 
पीपळ देग्यो आपरी 
समूची उमर गाँव नै अर 
छोड़ग्यो ळारै मीठी बातां। 


























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