एक सी तो माटी
एक सी बैव पून
एक सो तप सूरज
मूल में बेव एक सो पाणी
फेर ऐ न्यारा
न्यारा स्वाद
कठै स्यूं निपज्या
कियां हुयो ओ अचरज ?
दाड़मा"र मौसमी
आम"र अंगूर
काकड़ी"र मतीरा
न्यारा-न्यारा रूप'र सुवाद
मिनख रै समझ
में नहीं आवै ओ खेल
सारो कुदरत रो खेल
कठै कांई निपजा देव
समझ केवल सिरजनहार
सिरजनहार री खिमता
कुण समझ सक्यो
अर कुण समझ पावैळो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें