बुधवार, 16 अप्रैल 2014

कुदरत रो खेल


एक सी तो माटी
एक सी बैव पून
एक सो तप सूरज
मूल में बेव एक सो पाणी

फेर ऐ न्यारा
न्यारा स्वाद
कठै स्यूं निपज्या
कियां हुयो ओ अचरज ?

दाड़मा"र मौसमी
आम"र अंगूर
काकड़ी"र मतीरा
न्यारा-न्यारा रूप'र सुवाद

मिनख रै  समझ
में नहीं आवै ओ खेल
सारो कुदरत रो खेल
कठै कांई निपजा देव

समझ केवल सिरजनहार
सिरजनहार री खिमता
कुण समझ सक्यो
अर कुण समझ पावैळो।





















































































































































































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