शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?




जब हम गंगा में
माटी के दीपक
प्रवाहित करते और
देखते रहते कि किसका
दीपक आगे निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम सागर से 
सीपिया चुन-चुन कर 
इकट्ठी करते और
देखते रहते कि किसकी
सीपी से मोती निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?


जब हम झील के
किनारे बैठे रहते और 
बादलो की रिमझिम फुहारों में
भीगते हुए तुम कहती 
ये पहाड़ कितने अपने लगते हैं
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
  

जब हम चाँदनी रात में
छत पर जाकर सोते और
टूटते हुए तारों को देख कर
तुम कहती तारों का टूटना मुझे
अच्छा नहीं लगता
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?

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